शनिवार, 4 जून 2011

रागनी की चुदाई4

वो मेरी तरफ घूमकर पलटी और अपने कमर पे हाथ रखकर बोली - मुझे हर सजा मंजूर है , मेरे राजा भैया !! बोलो क्या कहते हो ? मेरे मन में एक शैतानी चमक उभरी ..मै बोला -रूको मै अभी आता हूँ और कमरे से निकलकर सीधा बाथरूम गया और पेशाब करके अपने कमरे में आकर वेसलीन का डब्बा जेब में डाला और खिड़की के परदे का लकड़ी का डंडा निकला साथ ही मस्तराम एवं पिक्चर वाली बुक लेकर दीदी के कमरे में लौटा और फिर कुर्सी पर बैठ गया तथा डंडा हिलाने लगा | मेरे हाथ में लकड़ी का डंडा देखकर दीदी सहम गयी और बोली भैया !! तुम मुझे मरोगे क्या ? (अपने सामने बड़ी उम्र की रिश्तेदार लगभग नंगी औरत तो डरते देख मेरा लंड फिर से तनतना उठा) मै थोडा कठोर और आदेशात्मक स्वर में बोला दीदी तुम चुप रहो ! जैसा मै कहता हूँ वैसा करती जाओ ..थोड़ा आगे आओ ..वो थोड़ा आगे आयी तो मैंने आदेश दिया अपना कान पकड़ो ! उसने कान पकड़ लिया , फिर मैंने डंडे को उसके बूब्स से सटाया और फिर टावेल के फोल्ड में फंसाकर खिंच दिया ..टावेल खुलकर नीचे जमीन पर गिर पडा | अब दीदी का संगमरमरी तराशा नंगा बदन मेरे सामने था , उनके हाथ कान पर थे और आँखे शर्म के कारण जमीन पे लगी थी ..जो बुर रात के अँधेरे में मेरे विकराल लंड से द्वन्द युध्ध करने का दुह्साहस कर सफलता पाई थी वही दिन के उजाले में अपने नंगेपन का एहसास कर जांघो के जोड़ में संकुचित होती जा रही थी | चूत को चिकना करके दीदी ने तो कमाल ही कर दिया था , वह अपने साइज से काफी छोटी लग रही थी ..बिलकुल १६ साल की लौंडिया की चूत की तरह लगता ही नहीं था की इस चूत ने एक बच्चा पैदा किया है और तीन तीन लंडो का वार झेला है | मैंने डंडे के अगला शिरा को चूत के होतो को छुलाया ..वो चिहुंकी और मेरी तरफ होटों को काटते हुए देखने लगी | मै शुष्क स्वर में बोला - दीदी अपनी टाँगे फैलाओ ! जैसे ही उसने खड़े खड़े अपनी टाँगे फैलाई वैसे ही बुर के पपोटे खुल गए तब मैंने अपने डंडे को बुर के फांको के बीच फिराने लगा ..दीदी सिहर उठी ..हांलाकि लकड़ी का डंडा आवेश का कुचालक होता है फिर भी उस समय दीदी के रोम रोम का सिहरन डंडे पर महसूस किया जा सकता था ..मैंने आहिस्ते आहिस्ते डंडे को चूत की दरारों में फिराने लगा ..दीदी पूरी गरम हो चुकी थी , इस बात का अंदाजा ऐसे लग रहा था की जब मै डंडे के मूवमेंट को रोक देता तो वो खुद ही हौले हौले कमर हिला कर अपनी चूत को डंडे पर घिसने लगती और जब मैंने डंडा हटाया तो वो चूतरस से भींगा हुआ था |

दीदी जब बाथरूम से वापस आयी तो आते ही शिकायत करने लगी ये क्या किया राजन ! सारा मुँह गंदा कर दिया , मुझे तो उलटी आ गयी | मै बोला कुछ नहीं , मेरी नजरें उनके पैरों के बीच सजी चिकनी बुर पर टिकी थी | अपनी लगातार निहारी जा रही बुर को देखकर शायद उन्हें कुछ शर्म महसूस होने लगी , तभी वो अपने पैरो को जोड़कर टेबल के किनारे दीवाल से सटकर खडी हो गयी | मै उनके पास जाकर उनके सामने घुटनों के बल बैठ गया , अब मेरी आँखों के ठीक सामने उनकी बुर थी और उसपर पानी की बुँदे चमक रही थी , शायद मेरे पैर के अंगूठे से झड़ने के कारण वो अपनी बुर को भी धो कर आयी थी | मैंने अपनी एक अंगुली से उनके बुर की दरारों को छेड़ा, उनके सारे शरीर में सिहरन दौड़ गयी फिर मैंने बोला दीदी अपने पैरों को खोलो | उन्हें लगा की मै उनका बुर ठीक से देखना चाहता हूँ , उन्होंने टाँगे फैलाई , मैंने अपनी जीभ निकालकर उनकी बुर को चाटना शुरू कर दिया | दीदी मचल गयी , शायद उनकी बुर को पहली बार किसी खुरदुरी जीभ ने स्पर्श किया था , वो गनगना रही थी पर मै पूरी तन्मयता से उनकी बुर चाटते जा रहा था साथ ही अपने दोनों हाथों से उनके चूतरों को मसल रहा था , अचानक मेरे बाएं हाथ की बीच की उंगली उनके गांड के छेद से टकराया , वो उछल पडी और मेरे सर को पकड़ लिया और मस्ती में आकर अपनी बुर को मेरे मुंह से रगड़ने लगी | मैंने ऊँगली का दबाब गांड के छेद पर बनाया परन्तु वो अन्दर घुस ही नहीं पा रहा था | तभी मैंने अपनी जीभ को बुर के अन्दर घुसेड दिया , अब दीदी मस्ती में आँखे बंदकर सिसियाने लगी और मेरे सर को अपने बुर पर दबाने लगी | मैंने दायें हाथ को उनके चुतरों से मुक्त कर जेब से वेसलीन का ट्यूब निकालकर ढेर सारा वेसलीन अपनी उँगलियों में चुपड़ लिया और फिर हाथ को पीछे ले जाकर बाए हाथ की अँगुलियों में भी चुपड़ लिया और ढेर सारा वेसलीन उँगलियों से उनके गांड के छेद पर लगा दिया और फिर बीच की उंगली का दबाब छेद पर बढाया , इसबार बड़ी सरलता से मेरी उंगली बेआवाज छेद में घुस गयी | अबकी वो अपनी चीख रोक न सकी और चिल्लाई -आ ..आ ..ह ..ह .हह .......सा ..ला ..............मार डा ..ला रे ….पर मै रुका नहीं और ऊँगली के अन्दर बहार करने की रफ़्तार बढाता रहा बल्कि अब तो मै अपने दोनों हाथ की बीच की ऊँगली को एक साथ उनके गांड में अन्दर बाहर कर रहा था |वो लगातार बड़बड़ाये जा रही थी , अचानक उसने मेरे सर को अपनी पूरी ताकत से बुर पर दबाना शुरू कर दिया और कांपते हुए झड़ने लगी ..आ..ह.ह......मै ... ग...ई...ई...., उनके बुर से निकलता नमकीन पानी मेरी जीभ को तर कर रहा था | ये स्वाद मेरे लिए बिलकुल नया था , मै बुर से निकलते पानी की एक एक बूंद को चाट गया | फिर दीदी निढाल होकर बेड पर वैसे नंगी ही पसर गयी |
इस दौरान मेरा लंड निकर में तनकर दर्द करने लगा था , मैंने फ़ौरन अपना निकर निकालकर उसे मुक्त कर दिया | अब मेरा लंड अपने पुरे जोश में आकर हवा में लहराने लगा लेकिन उसकी सहेली बेदम हो सुस्त पडी थी | मैंने उनसे पुचा दीदी इसका क्या होगा , वो हडबडाकर जल्दी से बोली भाई .. अभी नहीं ! खाना खाने के बाद दोपहर को कर लेना , मै कहीं भागी थोड़े जा रही हूँ , अभी थोडा आराम करने दो , मुझे खाना भी बनाना है , ये कहते हुए वो पेट के बल लेट गयी , उसे लगा की बुर के ढक जाने से शायद मेरा जोश ठंडा पद जाएगा | परन्तु मै कहाँ माननेवाला था , खड़े लंड के कारण मै बेकरार था जो उनके मांसल गांड को देखकर और कड़क हो गया था | मैंने दीदी के गांड पर हाथ फेरना शुरू कर दिया | पहले तो वो थोड़ा इनकार करती रही - सोने दे भाई ! क्यों तंग कर रहा है ? पर मेरी उंगलियाँ गांड के दरारों में घुसकर छेद से टकराया तो वो शांत होकर मजे लेने लगी | गांड का छेद वेसलीन से गीला तो था ही इसलिए मैंने हाथ के एक अंगूठे को गांड में घुसाकर अन्दर बाहर करने लगा | अब दीदी के चुतरों ने थिडकना चालू कर दिया और स्वमेव ही बेड से उठने लगा | मैंने दुसरे हाथ के अंगूठे को भी धीरे धीरे उनके गांड में घुसा दिया | दीदी थोडा ऐंठी और हलके से कराही ….. पर मैंने उंगली चोदन जरी रखा , मै एक अंगूठे को बाहर निकालता तो उसी समय दुसरे को अन्दर पेलतादुसरे को निकालता तो पहले को पेलता ..पुरे रिदम के साथ मै उनके नाजुक सी छोटी छेद को चौड़ा करने में लगा था ताकी लंड डालते समय दिक्कत ना हो | दीदी गरम होकर बडबड़ा रही थी - मै ..तो ..बच्चा ही ..समझती ..थी …..सा ला पूरा …..ह ..ह ..रा ..मी नि ..क ..ला ……में ..री ….गां..ड…..भी न .ही ….छो..डा …..उनकी सेक्सी आवाज सुनकर मेरा तना लंड फुफकारने लगा | वेसलीन को लंड पे चुपड़कर अपने फनफनाते लौड़े को गांड के छेद पे टिकाया , दीदी को मेरे अगले हमले का एहसास हो चुका था परन्तु इससे पहले वो संभलती मैंने एक जोरदार झटका मारकर लंड को तकरीबन एक तिहाई गांड में पेल दिया ..वो जोर से चींखी मैंने फ़ौरन पीठ पे झुककर अपने हाथों से उनका मुंह बंद कर दिया वो गुं..गुं ..करते हुए मचलने लगी और गांड चुदाई के दर्द से बचने के लिए अपने पैरों को सीधा करने लगी जिससे गांड के छेद का छल्ला लंड पर कस गया , वो तुरंत दर्द से दोहरी होकर पुनः अपने गांड को उठाकर चुतरों को फैला लिया | दर्द से तो मेरा भी बुरा हाल था , उस लंड को दीदी के इस पोज से थोड़ा राहत मिला | फिर मैंने उनके मुह से हाथ हटाकर उनके उभरे चुतरों को पकड़कर धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा और आहिस्ते आहिस्ते लंड को क्रमशः अन्दर सरकाने लगा | मेरे लंड पर खून की बुँदे भी चमक रही थी पहले तो मै डरा, पर फिर सोचा शायद चूत की तरह गांड का भी शील होता होगा | मै धीरे धीरे अपने चोदने की रफ़्तार बढ़ा रहा था और अब दीदी भी गरम चुदासी होकर बडबड़ा रही थी अ.आ.ज पहली बार मेरी गांड में कोई लंड गया है ….फाड़ डाल मेरी गांड को भाई और जोर से और जोर से अब रोकना मेरे लिए बहुत मुश्किल था मै झड़ने लगा मेरे लंड से निकलता गरम गरम लावा दीदी की गांड को भरता चला गया उनकी आँखे भी मस्ती में मुंदती चली गयी मै निढाल होकर उनके बगल में लेट गया दीदी की आँखे अभी तक बंद थी ..शायद अभी भोगी आनंद का लुफ्त उठा रही थी |
थोड़ी देर बाद दीदी बोली राजन पैंट पहनो और अपने कमरे में जाकर सो जाओ
मै उनकी चुचियों से खेलता हुआ बोला - उं….रहने दो ..मै यहीं ऐसे ही तुम्हारी बाँहों में सोऊँगा….अभी तो तुम्हारी चूत मारनी बाकी है | वो हडबडाते हुए बोली - नहीं अभी नहीं तेरा मन नहीं भरा क्या ? ….अभी तो मेरी गांड मार के हटा है ये कहते हुए वो अपनी चूचियों से भी मेरा हाथ हटाने लगी |मै बोला अभी नहीं तो रात में तो दोगी
वो बोली - रात का रिस्क मै नहीं ले सकती अगर बुआजी उठ गयी तो ..?मै बोला - माँ नहीं उठ सकती उन्हें हाई बी .पी . है और वो नींद की गोली खाकर सोती है वो तो झकझोड़ कर उठाने पर भी नहीं उठती

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मुझे छह महीने पहले की घटना याद आ गयी ..रात के करीब तीन बजे हलके भूकंप के झटके महसूस होते ही मै जागकर अपने कमरे से बाहर आँगन में आ गया बाहर मोहल्ले में भूकंप भूकंप का शोर मच रहा था तब मुझे माँ की याद आयी तो दरवाजे से चिल्लाकर माँ को जगाने लगा ,तब भी माँ नहीं उठी थी ..तब मै अपने कमरे में जाकर अपनी और माँ के कमरे के बीच इंटरकनेक्टिंग दरवाजे को खोला ..(वो दरवाजा मेरी तरफ से ही बंद रहता है ..शायद माँ , ऐसी ही किसी इमरजेंसी को सोंचकर अपने तरफ से खुला रखती है ) और फिर माँ को झकझोड्कर जगाने लगा परन्तु उनकी नींद नहीं खुली तब मैंने बड़ी मुश्कील से उन्हें बांहों में भरकर बिस्तर से उतारकर नीचे खडा किया ..(वो काफी भारी है ..उनके कुल्हे चौड़े हैं और बदन काफी मांसल है उठाने के क्रम में उनकी गुदाज गोलाइयों ने मेरे सीने से मादक रगड़ खाई थी तब मुझे जीवन में पहली बार उत्तेजना का संचार हुआ था ..लेकिन उस समय मुझे केवल उन्हें सही -सलामत बाहर निकालने का ही ख्याल आ रहा था . .) जब मैंने उन्हें अपने कंधे का सहारा देकर थोड़ी दूर चलाया तब जाकर उनकी नींद खुली थी बाहर शोर और बढ़ गया था ..बाहर निकलकर देखा तो तकरीबन सारे स्त्री -पुरुष अस्त -व्यस्त कपड़ो में ही बाहर निकले हुए थे …..)
फिर दीदी बोली अच्छा !! चलो रात की बात बाद में सोंचेंगे अभी तुम अपने कमरे में जाओ मै बोला - यहीं सोने दो न यहाँ क्या दिक्कत है ?वो बोली - अरे नहीं ! अगर कोई आया तो बिस्तर , तुम्हारी और अपनी हालत सुधारने में समय लगेगा कि नहीं ….और अगर देर लगेगी तो किसी को भी शक हो सकता है मै उनकी बात से सहमत होते हुए उठकर निकर पहनने लगा और जाकर अपने कमरे में सो गया ..

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